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Kavita Kosh से
गीत गाने, गुनगुनाने के बहाने और तुम ।
'''2.
दफ़्तरों में दर्द के शिकवे-गिले होते नहीं ।
मेज़ पर तय आँसुओं के मामले होते नहीं ।
काग़ज़ों पर ज़िंदगी के फ़ैसले होते नहीं ।
'''3.
ढल गया दिन और अपना ख्याल तक आया नहीं,
रात आई तो किसी कि आरज़ू में कट गई ।
ज़िंदगी ख़ामोशियों से गुफ़्तगू में कट गई ।
'''4.
धडकनें बेचैन, साँसों में उदासी है बहुत ।
ऐसा लगता है तुम्हारी रूह प्यासी है बहुत ।
क्या हमारी बात, हमको तो ज़रा-सी है बहुत ।
'''5.
तेरी महफ़िल में चले आए हैं लाशों कि तरह,
और आए हैं तो जी कर ही उठेंगे साक़ी ।
आज उस जाम को पी कर ही उठेंगे साक़ी ।
'''6.
ख़्वाब नाज़ुक थे छू लेने से बिखर जाते थे ।
इसलिए हम उन्हें बिन छेड़े गुज़र जाते थे ।
पहली कोशिश में ही वो शर्म से मर जाते थे ।
'''7.
हमने फिर रेत को मुट्ठी में पकड़ना चाहा,
भूल बैठे कि वो हर बार फिसल जाती है ।
आँख के खुलते ही ये दुनिया बदल जाती है ।
'''8.
हर नए मोड़ पे बस एक नया ग़म चाहा ।
गहरे ज़ख्मों के लिए थोड़ा-सा मरहम चाहा ।