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[[Category:ग़ज़ल]]
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फूलों की शोखी़ से तेरी याद जवाँ होती है हर नज़्म में तेरी बात निहाँ होती है'''रचनाकाल : २००५/२०११'''
सावन फूलों की पहली बारिश की सौंधी खु़शबूशोखी़ से तेरी याद जवाँ होती हैतेरे बदन की खु़शबू का गु़माँ मेरी हर नज़्म में तेरी बात निहाँ<ref>छुपी</ref> होती है
लम्स जो सर्दियों सावन की धूप से मिलता हैपहली बारिश की सौंधी-सौंधी खु़शबूउसमें तेरी उंगलियों मुझे तेरे बदन की ज़ुबाँ खु़शबू का गु़माँ<ref>भ्रम</ref> होती है
आँखें इतनी सुन्दर और निर्मल हैंलम्स<ref>स्पर्श</ref> जो सर्दियों की धूप से मिलता है मुझकोजैसे सुबह-सुबह पाक अज़ाँ उसमें तुम्हारी उंगलियों की ज़ुबाँ<ref>भाषा</ref> होती है
गेसू बनाये हुए मिजाज़ से उड़ते वो चंचल आँखें इतनी सुन्दर और निर्मल हैंजो देखजैसे हर रोज़ सुबह-भर ले फ़िदा उसकी जाँ सुबह पाक अज़ाँ होती है
चाँद को देखता हूँ जब भी ज़रा ग़ौर उसके गेसू<ref>केश</ref> बिखरते हैं मिजाज़ सेउड़ते हैंउसमें भी शक़्ल आपकी अयाँ जो उन्हें देख-भर ले फ़िदा उसकी जाँ होती है
लब तो ओस में भीगे हुए गुलाब हैंजिनके बोसे मैं चाँद को तिश्नगी रवाँ देखता हूँ जब कभी ज़रा ग़ौर सेमुझको उसमें भी शक़्ल आपकी अयाँ<ref>प्रदर्शित</ref> होती है
‘नज़र’ की मोहब्बत को हद नहीं हैदिल मांगते हैं वह हाथों उसके होंठ तो ओस में जाँ भीगे हुए गुलाब हैंरात-दिन जिनके बोसे को तिश्नगी रवाँ<ref>प्यास बढ़ना</ref> होती है
'''रचनाकाल : 2005 ‘नज़र’ की मोहब्बत को कोई भी हद नहीं हैजब दिल मांगते हैं वह हाथों में जाँ होती है
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