भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=कल सुबह होने के पहले / श…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चारो ओर
बिखरे पड़े हैं
मांस के लोथड़े
हड्डियाँ-आँखें-दाँत और अँतड़ियाँ !
मंडरा रहे हैं
चील-बाज-कौवे और गिद्ध !
जल गया है
सारा का सारा नगर !
अब
इस विस्तृत
सुनसान राज पथ पर
मैं अकेला चल रहा हूँ !
मेरे पीछे-पीछे
चल रहा है
एक खौफनाक काला शेर !
आगे
खुला हुआ नीला आसमान
और
लहलहाती हुई फसल है !
दूर
किसी सिवान के कुएँ में गूँजती आवाज़ को
चुनती एक छाया
मुझे देख कर भाग जाना चाहती है !
मैं अनिच्छा से उसकी ओर बढ़ रहा हूँ !
सामने
एक सीधा-समतल
पातालगामी ढलान है !
पसीना छूट रहा है मुझे !
जाने कब फिसल जाएँ पाँव
और....और सामने की रंग में डूबी जमीन
पानी के ऊपर उछलती मछलियाँ
और
पेड़ों की हिलती टहनियाँ
मुझे छोड़ कर
कहीं चली जाँय xxxxxxऔर रह जाय सिर्फ
पीछे-पीछे चलता खौफ़नाक काला शेर !
(1965)
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चारो ओर
बिखरे पड़े हैं
मांस के लोथड़े
हड्डियाँ-आँखें-दाँत और अँतड़ियाँ !
मंडरा रहे हैं
चील-बाज-कौवे और गिद्ध !
जल गया है
सारा का सारा नगर !
अब
इस विस्तृत
सुनसान राज पथ पर
मैं अकेला चल रहा हूँ !
मेरे पीछे-पीछे
चल रहा है
एक खौफनाक काला शेर !
आगे
खुला हुआ नीला आसमान
और
लहलहाती हुई फसल है !
दूर
किसी सिवान के कुएँ में गूँजती आवाज़ को
चुनती एक छाया
मुझे देख कर भाग जाना चाहती है !
मैं अनिच्छा से उसकी ओर बढ़ रहा हूँ !
सामने
एक सीधा-समतल
पातालगामी ढलान है !
पसीना छूट रहा है मुझे !
जाने कब फिसल जाएँ पाँव
और....और सामने की रंग में डूबी जमीन
पानी के ऊपर उछलती मछलियाँ
और
पेड़ों की हिलती टहनियाँ
मुझे छोड़ कर
कहीं चली जाँय xxxxxxऔर रह जाय सिर्फ
पीछे-पीछे चलता खौफ़नाक काला शेर !
(1965)
</poem>