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Kavita Kosh से
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और एक दिन नींद खुलेगी हमारी
और हम पाऐंगेपाएँगे
कि आसमान नहीं है हमारे सिर के ऊपर
कि प्रयोगशालाओं के भीतर से निकलता है तन्दूरी सूरज