भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
किष्किन्धाकाण्ड
'''सीताजी के खोज का आदेश'''
(राग केदारा) प्रभु कपि - नायक बोलि कह्योहै। बरषा गई, सरद आई ,अब लगि नहि सिय-सोधु लह्यो है।1। जा कारन तजि लोकलाज ,तनु राखि बियोग सह्यो है। ताको तौ कपिराज आज लगि कछु न काज निबह्यो है।2।  सुनि सुग्रीव सभीत नमित-मुख, उतरू न देन चह्यो है। आइ गए हरि जूथ देखि उर पूरि प्रमोद रह्यो है।3।  पठये बदि-बदि अवधि दसहु दिसि, चले बलु सबनि गह्यो है। तुलसी सिय लगि भव-------- दधिनिधि मनु फिरि हरि चहत मह्यो है।4। किष्किंधा काण्ड समाप्त 
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits