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|रचनाकार=सुब्रत देवविमल वनिक
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[[Category:बांगला]]
<poem>
पूरनमासी कि की एक रातबचपन के गाँव कि की वीथी पर
मुझे एक भी ब‘च्चा नहीं दिखा !
देखो, किस तरह चुपचाप सब सो रहे हैं—--
युगल हंस कि की तरह—
आँचल में संसार बाँधे हुए—
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