भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सिर्फ तेज़ाब भरा है
रूप-रंग ये कैसा जीवन में उतरा है
आज कँटीले झाड झाड़ यहाँ अँकुराए हैं ।
पीली होकर घास