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Kavita Kosh से
पीली होकर घास
यहाँ हरियाती है
बीमारों की संख्या बढती बढ़ती जाती है
थोथे गर्जन और धुएँ के साए हैं ।
अब तो सभी
हवा मे बाते में बातें करते हैं
व्याकुल हुए किसान
भूख से मरते हैं
मोबाइल वो लिए हुए मुह बाये मुँह बाए हैं ।
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