भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे=लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं / शृ…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=रसिक छमैंगे भूल / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
}}
<poem>
'''दोहा'''
''(कवि की उक्ति)''
कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़, ता छन देब-मनाइ ।
सुभ सिंगार-लतिका सकल, जग-फैलन के चाइ ॥६३॥
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=रसिक छमैंगे भूल / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
}}
<poem>
'''दोहा'''
''(कवि की उक्ति)''
कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़, ता छन देब-मनाइ ।
सुभ सिंगार-लतिका सकल, जग-फैलन के चाइ ॥६३॥
</poem>