भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आख़िर कबतक / एम० के० मधु

3 bytes added, 17:35, 6 जुलाई 2011
रोज लिखी जाने वाली एक ही भाषा
जिसका अर्थ सबको मालूम है
पर तुम्हे तुम्हें मालूम नहीं
क्योंकि तुम्हारे पास आंखें हैं
कान हैं