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Kavita Kosh से
ख़ुद ही बाज़ी ये मगर मात हुई जाती है
उनके आगे नहीं मुंह मुँह खोल भी पाते हों गुलाब
आँखों-आँखों में ही कुछ बात हुई जाती है
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