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Kavita Kosh से
ख़ुद को रो-रोके पुकारा किया वीराने में
उड़ रही है हो तेरी आँखों की ही जो ख़ुशबू हर ओर
रंग कुछ और है नज़रों के ठहर जाने में
प्यार का नाम लिया था कभी अनजाने में
जा रहा है कोई मुँह फेर के फेरके अब तुझसे, गुलाब!आ गया वह भी किसी और के औरके बहकाने में
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