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नूपुर बँधे चरण संध्या के नूपुर बँधे चरण
सागर की लहरों पर थिरक-थिरक करथिरककर
नाच रही है किरण-बालिका थर-थर
पिछल रहीं जल पर चंचल पगतलियाँ
लो खाली हो गया लुढ़ककर मधु-घट
फैली अरुण वारुणी शून्य डगर में
फिरते चारों ओर मधुप -पक्षी ढूँढ़ते शरण
टिकीं सदा यौवन-रँगरलियाँ किनकी!