भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुक्तक / गुलाब खंडेलवाल

No change in size, 20:44, 21 जुलाई 2011
७.
प्रीति के सुमन खिला देती हो
लाज की नींव नीवँ हिला देती हो
चाँदनी रात और ऐसी हँसी!
दूध में शहद मिला देती हो
चाँद को फूल की महक मिल जाय
तुम मुझे एक बार मिल जाओ
भूमि को स्वर्ग की महक झलक मिल जाय
<poem> 
2,913
edits