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{{KKRachna
|रचनाकार=वत्सला पाण्डे
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}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>आसमान के
जंगल में
कैक्टस
पसार रहा पांव

सिर्फ एक बार
ओढ़ते हैं ये
फूलों का लिबास

तितलियां
शायद पीड़ित थीं
मौसमी जुकाम से
तभी छली गईं

हर कांटे पर
बिंध गई तितली
मगर
अमर हो गए
उनके पंख
वे नहीं

साक्षी हैं
वे चट्टानें
जो हुआ करती थीं
विश्व सुंदरियां
अभी तक हैं
रक्त स्नाता

जब भी होती है
ऐसी मृत्यु
दिखते हैं
कुछ लोग
लग जाता है
एक और शिलालेख
</poem>
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