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{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
खनन माफ़िया
मिलकर लूटें
जल औ' जंगल
नित-नित टूटें
मैट रहे
कुदरत का लेखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
बोली 'छविया'
धरा-दबोचा
नेता-मालिक
सबने नोंचा
समाचार
दुनिया ने देखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
दुस्साहस-
क्रशरों का बढ़ता
चट्टानों से
चूना झड़ता
टूट रही
है जीवन रेखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
</poem>
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|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
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<Poem>
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
खनन माफ़िया
मिलकर लूटें
जल औ' जंगल
नित-नित टूटें
मैट रहे
कुदरत का लेखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
बोली 'छविया'
धरा-दबोचा
नेता-मालिक
सबने नोंचा
समाचार
दुनिया ने देखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
दुस्साहस-
क्रशरों का बढ़ता
चट्टानों से
चूना झड़ता
टूट रही
है जीवन रेखा!
किससे अब
क्या कहे सुलेखा!
</poem>