भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से फ़ायदा कुछ तो हुआ बे सरो सामानी स…
बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से
फ़ायदा कुछ तो हुआ बे सरो सामानी से

माँ ने स्कूल को जाती हुई बेटी से कहा
तेरी बिंदिया न गिरे देखना पेशानी1 से

मुफ़्त में नेकियाँ मिलती थीं शजर2 था घर में
अब हैं महरूम3 परिंदों की भी मेहमानी से

मैं वही हूँ के मिरी क़द्र न जानी तुमने
अब खड़े देखते क्या हो मुझे हैरानी से

इसमें राँझाओं की नालायकि़यों का क्या है
इश्क़ जिंदा है तो बस हुस्न की क़ुर्बानी से

कोई दानाई यहाँ काम नहीं आती ’अना’
शेर कुछ अच्छे निकल आते हैं नादानी से

१.माथा २.पेड़ ३.वंचित