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Kavita Kosh से
मुक्द्दर किसी का न जंजीर में हो
लिखा मैने मैंने खत हैं क्यूं उत्तर न आया जरुरी नही नहीं उसकी तहरीर में हो
न पूछा किसी ने भी जिन्दे को पानी
बना मक्बरा उसकी तौकीर में हो
ये रौशन अगर थोडी थोड़ी दुनिया है"आज़र"
तुझे क्या पता तेरी तन्वीर में हो
</Poem>