भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदस्य:महावीर जोशी पूलासर

9 bytes added, 10:02, 2 अक्टूबर 2011
क्यु जी सोरो करै,
 
दुसरा गै घर री बाता सुण गै,
 
जकी बी घर मॆ हॊवण लागरी है
 
बा ही तॊ तॆरॆ घर मॆ हॊवॆ,
 
तु भीत रै चिप्यॊरॊ इनै,
 
बॊ ही तॊ बिनॆ चिप्यॊडॊ खड्यॊ है,
 
क्यु नी सॊचै तु कै ..भीता कै भी कान हॊवॆ,
 
आज तु सुणसी
 
काल बॊ तॆरी सुणसी,
 क्यु सरमा मरै,  
मॊरीयॊ पगा कानी दॆख गॆ रॊवै ,