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बूढ़े ने झट शीश झुकाया-
"सुनो बात तुम, जल की रानी
तुम्हें सुनाऊँ व्यथा कहानी,
मेरी बुढ़िया मुझे सताए
उसके कारण चैन न आए,
कहती- जाकर शीश नवाओ
जल-रानी की मिन्नत करके
तुम अच्छा-सा घर बनवाओ ।"
"दुखी न हो, तुम वापस घर जाओ
और वहाँ निर्मित घर पाओ ।"
वह कुटिया को वापस आया
नहीं चिन्ह भी उसका पाया ।
वहाँ खड़ा था अब बढ़िया घर,
चिमनी जिसकी छत के ऊपर
लकड़ी के दरवाज़े सुन्दर ।
बुढ़िया खिड़की में बैठी थीमछली औ' बूढ़े को फिर वहाँ पुकाराकोस रही थी-"तुम बुद्धू हो, मूर्ख भयंकरवह माँगा भी तो तभी चीर जल-धाराकेवल यह घर,आई पासजाओ, और यह पूछा-फिर से वापस जाओ"बाबाऔ' मछली को शीश नवाओ, क्यों है मुझे बुलाया?" नहीं गँवारू रहना चाहूँ,ऊँचे कुल की बनना चाहूँ ।"
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु'''
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