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<poem>तपती धरती माथै लोर और हां और
बरसै भलांई लगा जोर और हां और

ऐकर कीं तो बुझगी आ अछेही तिरस
हरखण लाग्यो मन-चोर और हां और

मन मरजी म्हांरी जमानै रो कांई
हुवण दो जे हुवै शोर और हां और

बस आ घड़ी मिलण री अमर हो जावै
बाढो बिजोग रा थोर और हां और

सांस सागै गुंथ सांस काढै रंग नुंवो
निखरै रूप जाणै भोर और हां और</poem>
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