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कब तक सहें / राधेश्याम बन्धु

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|रचनाकार=राधेश्याम बन्धु
|संग्रह=नवगीत अर्धशती/
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<Poem>
ज्योति- पथ यातना यह कौन दंशित कर गया हैऔर हम कब तक सहें ?
पालतू तोते चतुर्दिक व्याप्त मुखर संवाद गीदड़ -भेड़िए शब्दकोशों से मांस के भुक्खड़ मिटे प्रतिवादठसाठस भर चुके नुक्कड़ बंद दरवाजे हमारी खिड़कियाँ कब तक रहें ?
तोड़ते दमसूर्य -पथ पर रोज ही एहसास गुमसुम मौन है आकाश उफ़ ! समय को सहमती आज यह क्या हो गया हैइस हवा के साथ हम कब तक बहें ?
बाज़ दहशत -सी लगाता गश्त हर कबूतर मौन को अभिशप्त  सूर्य -रथ बंधु मेरे ! यातना यह कौन खंडित कर गया हैऔर हम कब तक सहें ?
</poem>
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