भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजगरी संत्रास / रमेश रंजक

6 bytes added, 21:40, 7 जनवरी 2012
टूटता अपनत्व कुंठित
व्योम से विच्छिन्न
उल्कापात
थक गई है नब्ज जब संवेदना की
क्या करे कमज़ोर संजीवन निवेदन
ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits