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जान ए अज़ीज़, रख्खियो न हम को नज़र से दूर
है अपनी राह, जादा ए शाम ओ सहर से दूर
 
शाम ए फ़िराक़ आतिश ए ग़म क्या जलाएगी
गिरती है बरक़ ए तूर भी हद ए नज़र से दूर
 
ऐश ओ तरब का दौर है साक़ी पिला शराब
मैं आ गया हूँ रक़स कुनाँ अपने घर से दूर
 
ऐ कजरवी ए वक़्त तू ही कर निशानदही
मेरी नज़र है जलवा ए शम्स ओ क़मर से दूर
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