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अँधेरे के पस मुद्दा ए परदा उजाला खोजता क्यूँ हैमुद्दई मतलब की बात जो अन्धा हो गया वो दिन में सूरज ढूँढता क्यूँ हैआप ने भी ख़ूब की मतलब की बात
बताया तो था लैला ने मगर सहरा नहीं समझाबे ग़रज़ दीवान्गान ए शौक़ हैं कि मजनूँ रेतीले दर पर सर अपना फोड़ता क्यूँ हैकब कही, किस ने सुनी मतलब की बात
ये रोज़ ओ शब की गरदिश ही अगर है मक़सद ए हस्तीहोश में आने नहीं देते मुझे तो सू ए आसमाँ ऊँची नज़र से देखता क्यूँ हैकह न दूँ मैं भी कोई मतलब की बात
ये माना हिज्र का ग़म तुझ पे तारी है हो गया मायूस आख़िर दिल ए नादाँमिराजो आया है वो जाएगा हाए तू नाहक़ सोचता ने क्यूँ हैसुनी मतलब की बात
सहर होने को है शायद, सितारे हो गए मद्धमशब कहते कहते दास्तान ए ग़म जा रही है तू अभी तक ऊँघता क्यूँ हैदर्द ए दिल लब पे आ कर रुक गई मतलब की बात
यक़ीनन कुछ सबब था, तेरी ज़न्जीरें बात अच्छाई की भी सुनते नहीं टूटींमगर पा ए शिकस्ता राह से बन्धन तोड़ता क्यूँ जिन को हैलगती बुरी मतलब की बात
ये दीवारें मिरे घर की खड़ी खामोश सुनती हैंबुत ख़ुदा हो जाएंगे, उन से अगर मेरे अन्दर छुपा जज़्बा अलम का बोलता क्यूँ हैऐ रवि कह दें कभी मतलब की बात
जो तूफ़ानी हवाओं के मुक़ाबिल हो नहीं सकता
चलो देखें समुन्दर से वो आख़िर खेलता क्यूँ है
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