भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार= अमजद हैदराबादी
}}
<poem>
किस शान से ‘मैं’ कहता हूँ, अल्लाह रे मैं।
समझा नहीं ‘मैं’ को आज तक वाह रे मैं॥
</Poem>