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Kavita Kosh से
एक बज गया
सोई होगी तुम निश्चय ही
जैसा वे कहते हैं
खत्म कहानी यहीं हो गयीगई
नाव प्रेम की
जीवन-चट्टानों से टकरा कर चूर हो गयीगई
अब हम स्वतंत्र हैं
आपस के अपमान व्यथा आघातों की
ऐसे पहर जगा है कोई
युग इतिहास विश्व को
संबोधित करने को .।