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या फिर मेरी निगाह से देखा करे कोई
होती है इस में हुस्न की तौहीन<ref> सौन्दर्य का अपमान </ref> ऐ 'मज़ाज़',
इतना न अहल-ए-इश्क़ को रुसवा करे कोई
</poem>
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