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Kavita Kosh से
वर्तनी सुधार
ज्यों नचती हों
स्वर्ग-सुघर की
::: कानन में।
टप-टप टपतीटपतीं
टपक रहीं
::: बूँदें
ढका
मेघ ने
नभ को पुरापूरा,
दिनकर की
निष्प्रभ