भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=पुष्पिता
|संग्रह=
}}उम्र{{KKCatKavita}}<poem>उम्रपकड़ती है - — कमर
फिसलती हुई
खेलती है - — पीठ के मैदान में और धँसा देती है - — देह
बुढ़ापा
बैठता है - — कंधे पर
पकड़ता है गला
और चेहरे को कसता है
अपने पंजे के भीतर
उम्र का शिकंजा
अपनी रगड़ से चेहरे पर
बनाता है - — बुढ़ापे का जाल
खुरचता है यौवन की चमक
और चिपकाता है - — झुर्रियों का जाल
जिसमें समेटकर
ले जाती है - — मृत्यु
उसे
सबसे बेख़बर लोक में ।
</poem>