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उम्र / पुष्पिता

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|रचनाकार=पुष्पिता
|संग्रह=
}}उम्र{{KKCatKavita‎}}<poem>उम्रपकड़ती है - कमर 
फिसलती हुई
 खेलती है - पीठ के मैदान में  और धँसा देती है - देह  
बुढ़ापा
 बैठता है - कंधे पर  
पकड़ता है गला
 
और चेहरे को कसता है
 
अपने पंजे के भीतर
 
उम्र का शिकंजा
 
अपनी रगड़ से चेहरे पर
 बनाता है - बुढ़ापे का जाल  
खुरचता है यौवन की चमक
 और चिपकाता है - झुर्रियों का जाल  
जिसमें समेटकर
 ले जाती है - मृत्यु  
उसे
 
सबसे बेख़बर लोक में ।
</poem>
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