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दारिद्र को जारन को नहीं आयो / शिवदीन राम जोशी
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04:52, 19 फ़रवरी 2013
जाय यो काज तो तुच्छ सरायो ।
केसरी पुत्र कछु न करी अहो !
स्वर्ण की लंक को
जय
जाय
जरायो ।
त्रिभुवन नाथ मदन को जारि के,
लोक आनन्द को दूर दुरायो ।
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