भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह=मीठी सी चुभन/ '...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=मीठी सी चुभन/ 'अना' कासमी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
है वक़्त कम औ लम्बा सफ़र भागते रहो
रस्ता दिखे जहां से जिधर भागते रहो
ठहरे अगर तो रौंद के रख देंगे लोगबाग
दुनिया जिधर को भागे उधर भागते रहो
ये ज़िन्दगी है चोर सिपाही के खेल सी
पीछे पड़े हैं सैकड़ों डर भागते रहो
बमबारियों के शहर में ठहरे तो मर गये
अपने उठा के कांधों पे घर भागते रहो
तुम कैमरे में क़ैद करो ज़िन्दगी के सच
जारी रखो ये खोज-ख़बर भागते रहो
बहती हुई नदी ने ‘अना’ मुझसे ये कहा
आंखों में लेके अज़्मे-सफ़र भागते रहो
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=मीठी सी चुभन/ 'अना' कासमी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
है वक़्त कम औ लम्बा सफ़र भागते रहो
रस्ता दिखे जहां से जिधर भागते रहो
ठहरे अगर तो रौंद के रख देंगे लोगबाग
दुनिया जिधर को भागे उधर भागते रहो
ये ज़िन्दगी है चोर सिपाही के खेल सी
पीछे पड़े हैं सैकड़ों डर भागते रहो
बमबारियों के शहर में ठहरे तो मर गये
अपने उठा के कांधों पे घर भागते रहो
तुम कैमरे में क़ैद करो ज़िन्दगी के सच
जारी रखो ये खोज-ख़बर भागते रहो
बहती हुई नदी ने ‘अना’ मुझसे ये कहा
आंखों में लेके अज़्मे-सफ़र भागते रहो
</poem>