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चांद / नीरज दइया

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{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह= उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>हमारे प्रेम से पहले
था आकाश में चांद
मैंने देखा नहीं
जब देखा
दिखा नहीं ऐसा
दीख रहा है अब जैसा...!

चांद वही है
चांदनी भी वही है
बस देखने वालों में
हो गया हूं शामिल मैं
क्या सूझा मुझे
कि बिठा दिया तुमको
मैंने चांद पर!</poem>
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