भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कुछ चीज़ें अभी भी रह गई हैं
मटमैली नदी की धार के पत्तों पर रखा दीप, जलता बुझता फिर भी जलता हुआ
रह गईं हैं छत पर ओंस ओस की बून्दें
बून्दों में चमकता जल
जल से बह निकला सूरज का सुनहलापन