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अब क्या होली दीवाली
राम रहीम जूझ बैठे
ंखांर खांर से अकड़े-ऐंठे
ख्वाब हो गए नूर मियाँ
हुए जिगर से दूर मियाँ
बस यादों का मेला है
अब जो रामसजीवन है
ंखाली ंखाली खाली खाली बर्तन है
टूटा टूटा दरपन है
मातम वाला ऑँगन आँगन है
पानी के बाहर जैसे
मछली वाली तड़पन है
चौराहे पर देश खड़ा
गली गली अजगर लहरे
णख्म ज़ख्म दे रहा है गहरे
उसका फन मिलकर कुचलो
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