भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया से अलग / रति सक्सेना

15 bytes added, 13:06, 29 अगस्त 2013
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = रति सक्सेना
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
मैंने बेटियाँ जनी हैं
 
वो भी पाँच-पाँच
 
तुम कुछ दंभ से कहा करती थीं
 
यह जताती हुई कि
 
कितनी अलग हो दुनिया से
 
लेकिन आँख बचा के
 
अपने काल-कवलित बेटों के लिए
 
रो लेती थीं
 
यूँ सामान्य-सी बनती कि
 
आँख में कुछ गिर गया
 
तुम अलग थीं
 
संदेह नहीं, अपनी दुनिया से
 
पर मैं तुम में बेहद साधारण माँ खोजती रही
</poem>