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नहर / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatRajasthaniRachna}}
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<Poempoem
नहर ओळखै है
आपरी हद
ढ़ांपण वेगी
उघाड़ा धोरियां नै।
 </Poempoem>
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