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{{KKRachna
|रचनाकार=हेमन्त गुप्ता ‘पंकज’
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}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>जद
ऊं छोटो छो
पंछियां को उडबो
आकास में सुतंत्र
तद
वो भी चावै छो
उड़बो
हवा सूं बातां करबो
उन्मुक्त

पण
अब ऊ जाणग्यो छै
कल्पना का आस्मान
अर
सचाई की जमीन को
अंतर
प्रत्यक्ष
जीवण जमीन छै
अर
मनख्या की आसा आसमान
अणंत
अब
ऊं होग्यो छै मोट्यार।
</poem>
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