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{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदान सिंह जोलावास
|संग्रह=
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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<poem>भरोसा री भींत माथै
ऊभा है रिस्ता।
चांद, तारा, समंदर अर बिरखा
फगत झूठा दिलासा है।
साच पूछो तो
पसीनै री गंध
अर लहू सूं काठा बंध्योड़ा है
रिस्ता।</poem>
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<poem>भरोसा री भींत माथै
ऊभा है रिस्ता।
चांद, तारा, समंदर अर बिरखा
फगत झूठा दिलासा है।
साच पूछो तो
पसीनै री गंध
अर लहू सूं काठा बंध्योड़ा है
रिस्ता।</poem>