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|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
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<poem>हरी , नीली , पीली
सुनहरी सुर्ख ,गुलाबी चुन्नियाँ
खिल- खिल हँसती चुन्नियाँ …
कभी सिरों पर , कभी छातियों पर
गिर -गिर, उड़ -उड़ जाती चुन्नियाँ …
कभी सावन के झूलों पर
कभी खेतों में हँस - हँस
आँख - मिचौली होती चुन्नियाँ …
कभी दरिया के किनारे
दरख्तों को आलिंगन में ले
हीर - रांझा होती चुन्नियाँ …
चढ़ती उम्र के साथ -साथ
खुद ब खुद आप ही
सियानी हो जाती हैं चुन्नियाँ …
सिरों पर, छातियों पर,आँखों पर
गुमसुम , चुपचाप नीची नज़र कर
आंसुओं में बदल जाती हैं चुन्नियाँ …
हरी , नीली , पीली
सुनहरी, सुर्ख ,गुलाबी चुन्नियाँ ….
</poem>
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<poem>हरी , नीली , पीली
सुनहरी सुर्ख ,गुलाबी चुन्नियाँ
खिल- खिल हँसती चुन्नियाँ …
कभी सिरों पर , कभी छातियों पर
गिर -गिर, उड़ -उड़ जाती चुन्नियाँ …
कभी सावन के झूलों पर
कभी खेतों में हँस - हँस
आँख - मिचौली होती चुन्नियाँ …
कभी दरिया के किनारे
दरख्तों को आलिंगन में ले
हीर - रांझा होती चुन्नियाँ …
चढ़ती उम्र के साथ -साथ
खुद ब खुद आप ही
सियानी हो जाती हैं चुन्नियाँ …
सिरों पर, छातियों पर,आँखों पर
गुमसुम , चुपचाप नीची नज़र कर
आंसुओं में बदल जाती हैं चुन्नियाँ …
हरी , नीली , पीली
सुनहरी, सुर्ख ,गुलाबी चुन्नियाँ ….
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