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सबद-दोय / राजेश कुमार व्यास

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<poem>नाप लेवै सबद
अरबां-खरबां
कोसां रो आंतरो
बूर देवै
मन मांय
खुद्योड़ी
अलेखूं खायां।

घणकरी बार
सुळझाय देवै
अंतस मांय
उळझ्योड़ा
हजारूं-हजार
गुच्छा।

सबद पुळ है
अबखै बगत रा
जीवण-जातरा रा।</poem>
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