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<poem>बसेरा
फ़क़त एक हलचल


छोटे - छोटे रास्‍ते
दौड - दौडकर
पहुँच जाते हैं इधर - उधर


बहुत से क़दमों को
तय करनी हैं दूरि‍याँ


मरघट तक...
असंभव ।
बोरचिंदी के आते ही
याद आते हैं ज़रूरी काम


गौरैया चाहती है
लोगों के बीच जगह


कि‍तनी पतली टहनी पर
लटका हुआ है
संसार

- 1998 ई0</poem>