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{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
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}}


बरबाद मौहब्बत की दुआ साथ लिए जा

टूटा हुआ इक़रार-ए-वफ़ा साथ लिए जा


एक दिल था जो पहले ही तुझे सौंप दिया था

यह जान भी, ऎ जान-ए-अदा ! साथ लिए जा


तपती हुई राहों से तुझे आँच न पहुँचे

दीवानों के अश्कों की घटा साथ लिए जा


शामिल है मेरा ख़ून-ए-जिगर तेरी हिना में

यह कम हो तो अब ख़ून-ए-वफ़ा साथ लिए जा


हम जुर्म-ए-मौहब्बत की सज़ा पाएंगे तन्हा

जो तुझ से हुई हो वह ख़ता साथ लिए जा
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