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|रचनाकार=दामोदर लालदास'विशारद'
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|सारणी=शकुन्तला / दामोदर लालदास'विशारद'
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उबडवाय गेल नयन लाल, जल रुकि-रुकि बहले।।
किछु दिवसक उपरान्त महाकवि कालीदासक।