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<poem>

यह चमक ज़ख़्मे-सर से आई है
या तिरे संगे-दर से आई है

रंग जितने हैं उस गली के हैं
सारी ख़ुशबू उधर से आई है

सा~म्स लेने दो कुछ हवा को भी
थकी हारी सफ़र से आई है

देना होगा ख़िराज ज़ुल्मत को
रौशनी सब के घर से आई है

नींद को लौट कर नहीं जाना
रूठकर चश्मे-तर से आई है

आपको क्या खबर कि शे’रों में
सादगी किस हुनर से आई है
</poem>