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Kavita Kosh से
जिसके धूमैली गंध को फ़ाड़कर ऊपर जा
नहीं सकता, उलझकर जाता विश्व का सब नाद
नीड़ छिना बुलबुल चंचु में
जाने कौन सी नस हमारे राष्ट्र
देवता के, कानों की दब गई
जो वह बधिर हो गया
पहुँच पाता नहीं, रोटी के लिये