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अर संवेदन लीर-लीर
फेरूं भी पोथ्यां छपावणी है
-के द्ग4द्म4 मलाल है?
-कमाल है।’
अर रुळतै कबीलै नैं सरदार मिलसी
म्हारो सत साहेब अक्षर रूप है
बंारै बांरै तांई समूळी छियां अर धूप है
म्हैं बीं नैं ई अराधूंली
अर जगाऊंली काळजै मांय भूचाल
धारण कर चौरासी री जूण
सुपनै नैं सरजीवण करूं चाँद रै रूप मांय
कदै कदास तो दीसण लागूं ठ्ठद्मस्द्बद्मद्भस् दौपारै री धूप मांय।
कारण अेक है-
कठैई सिरजण मांय बाधा है
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