भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनील गज्जाणी |संग्रह=मंडाण / नीर...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुनील गज्जाणी
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>भुरती मिनखाजूण
स्यांत सूती चिताग्नि मांय
उठती लाय
घेरै आपरी जगां
मंजर मांड देवै जीवण जातरा रो।
जीव सूं जीवण मिल्यो
मंडती बातां मगज मांय
कीं कैवै अर कीं नीं कैवै
नेन्हा-नेन्हा पगलियां सूं ले’र
अनुभव वाळै पगां ताणी।
लाय आकरी हुवती
मिनखजूण धूंवै मांय पंचतत्त्वां में मिलती
राख बणती
आंसू ठुळकावतां
बाथां मांय ले’र थ्यावस देवता लोग
उणरै हेताळुवां नैं
पूरी हुई एक जीवण जातरा
आपरी नवी जातरा खातर
पूठा आवता वै पग
समझता जीव-तत्त्व रो एक सार।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सुनील गज्जाणी
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>भुरती मिनखाजूण
स्यांत सूती चिताग्नि मांय
उठती लाय
घेरै आपरी जगां
मंजर मांड देवै जीवण जातरा रो।
जीव सूं जीवण मिल्यो
मंडती बातां मगज मांय
कीं कैवै अर कीं नीं कैवै
नेन्हा-नेन्हा पगलियां सूं ले’र
अनुभव वाळै पगां ताणी।
लाय आकरी हुवती
मिनखजूण धूंवै मांय पंचतत्त्वां में मिलती
राख बणती
आंसू ठुळकावतां
बाथां मांय ले’र थ्यावस देवता लोग
उणरै हेताळुवां नैं
पूरी हुई एक जीवण जातरा
आपरी नवी जातरा खातर
पूठा आवता वै पग
समझता जीव-तत्त्व रो एक सार।
</poem>