भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीळा पात / हुसैनी वोहरा

1,114 bytes added, 13:40, 17 मई 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हुसैनी वोहरा |संग्रह=मंडाण / नीरज ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हुसैनी वोहरा
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>पीळा पात झड़ रैया है
रूंख ठूंठ होय रैया है
च्यारूंमेर
दहक उठ्या
टेसू अर पलास
अनोखो है
परकत रो दरसाव
वैम मांय मिनख
देख-देख
इचरज करै।

बदळाव परकत रो नेम
ठूंठ रो रूप निखरग्यो
जीवण मांय आयगी नवी रंगत
हिवड़ा मांय होवण लाग्यो
उछब रो उमाव
गूंजण लाग्या फागण रा राग
बाजण लाग्या चंग अर डफ
मिनख ई फूल ज्यूं खिलग्या
पीळा पात झड़ रैया है
मन हो रैयो है हरियो-भरियो।</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,492
edits