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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |संग्रह=मौन से बतक...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=मौन से बतकही / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>धरती कांपी
रेत हो गई
कब भागमभाग हो गई
बिखरी रेत पर
कुछ परछाइयां
बस! सन्नाटा पसर गया
वे यूं ही सारी उम्र
बिखरी रेत पर
आशियाना ढंूढ़ते
चक्करघिन्नी होकर
मजदूरी खोजते रहे
रेत रेत रह गई
रेत के बाद और रेत
पगडंडी भी बिखर गई
मजदूर और कामगार
रेत होने लगे
बाहर भीतर बस
सन्नाटा पसर गया
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=मौन से बतकही / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>धरती कांपी
रेत हो गई
कब भागमभाग हो गई
बिखरी रेत पर
कुछ परछाइयां
बस! सन्नाटा पसर गया
वे यूं ही सारी उम्र
बिखरी रेत पर
आशियाना ढंूढ़ते
चक्करघिन्नी होकर
मजदूरी खोजते रहे
रेत रेत रह गई
रेत के बाद और रेत
पगडंडी भी बिखर गई
मजदूर और कामगार
रेत होने लगे
बाहर भीतर बस
सन्नाटा पसर गया
</poem>